वट पूर्णिमा पर सुहागिन महिलाएं करें इन नियमों का पालन, अखंड सौभाग्य का मिलेगा आशीर्वाद

WD Feature Desk
सोमवार, 9 जून 2025 (18:16 IST)
Vat Savitri Vrat puja ke niyam: हर साल ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि को वट पूर्णिमा का पावन पर्व मनाया जाता है। यह दिन विशेष रूप से विवाहित महिलाओं के लिए बेहद शुभ और फलदायी माना गया है। इस दिन सुहागिनें अपने पति की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और सौभाग्य की कामना के लिए वट वृक्ष की पूजा करती हैं और व्रत रखती हैं। यह व्रत महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा और दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में विशेष रूप से मनाया जाता है, जबकि उत्तर भारत में ज्येष्ठ अमावस्या को वट सावित्री व्रत का विधान है। हालांकि, दोनों ही व्रतों का मूल उद्देश्य पति के कल्याण और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति है।

वट पूर्णिमा का महत्व: क्यों है यह इतना खास?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, वट वृक्ष में त्रिदेवों – ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास माना जाता है। इस वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, तने में विष्णु और पत्तियों में शिव का निवास होता है। साथ ही, कहा जाता है कि देवी सावित्री ने इसी वट वृक्ष के नीचे अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस लाए थे। इसीलिए, वट पूर्णिमा का व्रत पतिव्रत धर्म और अटूट प्रेम का प्रतीक है। इस दिन व्रत रखने और वट वृक्ष की पूजा करने से न केवल पति की आयु लंबी होती है, बल्कि दांपत्य जीवन में सुख-समृद्धि भी आती है।

वट पूर्णिमा व्रत के महत्वपूर्ण नियम: क्या करें और क्या नहीं?
वट पूर्णिमा का व्रत रखने वाली महिलाओं को कुछ विशेष नियमों का पालन करना बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है, ताकि उन्हें व्रत का पूर्ण फल प्राप्त हो सके।
1.   व्रत का संकल्प: व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। इसके बाद हाथ में जल लेकर वट पूर्णिमा व्रत का संकल्प लें।
2.   पूजा सामग्री: पूजा के लिए एक बांस की टोकरी में सत्यवान और सावित्री की मूर्ति या तस्वीर, धूप, दीप, रोली, चावल, हल्दी, मेहंदी, सिंदूर, लाल धागा, फल (विशेषकर आम और केला), मिठाई, भीगे हुए चने, जल और दक्षिणा रख लें।
3.   वट वृक्ष की पूजा: वट वृक्ष के पास जाकर सबसे पहले जल चढ़ाएं। फिर रोली, चावल, हल्दी और सिंदूर से पूजन करें।
4.   परिक्रमा और धागा बांधना: वट वृक्ष के चारों ओर 108 बार परिक्रमा करें और प्रत्येक परिक्रमा के साथ वट वृक्ष पर लाल धागा बांधते जाएं। परिक्रमा करते समय पति की लंबी आयु और सौभाग्य की कामना करें।
5.   कथा श्रवण: पूजा के बाद वट सावित्री व्रत की कथा अवश्य सुनें या पढ़ें। यह कथा व्रत के महत्व और फल को बढ़ाती है।
6.   फलाहार: वट पूर्णिमा का व्रत निर्जला या फलाहार दोनों तरह से रखा जा सकता है। अपनी क्षमता के अनुसार व्रत का पालन करें।
7.   ब्राह्मण को दान: व्रत के समापन पर ब्राह्मणों को भोजन कराएं या दान-दक्षिणा दें।
8.   सात्विक भोजन: व्रत के दिन तामसिक भोजन (प्याज, लहसुन, मांसाहार) और शराब का सेवन बिल्कुल न करें।
9.   क्रोध और अपशब्द: व्रत के दौरान क्रोध करने या किसी को अपशब्द बोलने से बचें। मन को शांत और पवित्र रखें।
10.  शुभ विचार: पूरे दिन शुभ विचारों में लीन रहें और भगवान का स्मरण करें।
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