नायि‍का विशेष : जनक मग‍िलिगन पलटा

स्मृति आदित्य
इंदौर शहर की जानी-मानी महिला शक्ति स्तंभ-समाज सेविका श्रीमती जनक पलटा मग‍िलिगन को पद्मश्री सम्मान मिल चुका है।  26 जनवरी 2015 को डॉ. जनक पलटा को पद्मश्री से सम्मानि‍त करने की घोषणा की गई, तो अपनी प्रतिक्रिया में समाजसेवी डॉक्टर जनक मग‍िलिगन पलटा ने कहा कि मैं जरुरतमंदों की सेवा करने के लिए सामाजिक कार्यों से जुड़ी। सम्मान व मेडल के बारे में सोचकर सेवा नहीं की। मगर इस सम्मान ने मुझमें नई ऊर्जा और शक्ति भर दी है।


 
 
करिश्माई व्यक्तित्व की धनी जनक दीदी को आप एक रेखा में खड़े होकर परिभाषित कर ही नहीं सकते। उनके बेमिसाल व्यक्तित्व में छुपे विविध पक्षों पर कुछ लिखने के लिए हर अयन में जाकर देर तक निहारना होगा। प्रकृति ने जैसे उन पर अपना हर रहस्य उजागर करने की ठान रखी है।
 
अपने दैनिक जीवन में वे हर बात, हर काम को प्राकृतिक अंदाज में संपन्न करती है। इंदौर के पास ग्राम सनावदिया की सुरम्य पहाड़ी के बीच, आसपास फैले खेतों में जैसे ही उनके निवास 'गिरी-दर्शन' में आप प्रवेश करते हैं चारों तरफ से उठती औषधीय मसालों, सब्जियों और सुकुमार फूलों की नशीली सुगंध मदमस्त कर देती है। 
सूर्य और सौर ऊर्जा से उनका रिश्ता....पढ़ें अगले पेज पर

प्रकृति के प्रथम प्रतीक सूर्य से उनका करीबी रिश्ता है। सौर ऊर्जा से उनके घर की रसोई चलती है। 
 
कम से कम संसाधनों से निर्मित आकर्षक सौर ऊर्जा उपकरण उनके स्वर्गीय पति जिम्मी मि‍‍क्गिलिगन ने अपने हाथों से बनाए हैं। वे उनका नाम इतने प्यार से लेती है जैसे जिम्मी यहीं कहीं आसपास हैं और सौर ऊर्जा से संचालित उपकरणों को समझाने में उनकी मदद करेंगे लेकिन एक दुखद हादसे का शिकार होकर जिम्मी जनक दीदी को छोड़कर चले गए। 


 
लेकिन जनक दीदी ने अपने आप से उन्हें कभी दूर नहीं होने दिया। उनकी हर याद, हर निशानी, हर सपने को आत्मसात कर वे समाज सेवा में लगी हैं। 
 
उम्र उनकी बढ़ रही हैं पर दिल एकदम बच्चों की तरह है। अपने हर सृजन पर वे चहक उठती हैं, अपने हर निर्माण पर वे खिल जाती हैं। यही पहचान है जनक मि‍‍क्गिलिगन पलटा की। गांव से लेकर शहर तक वे जनक दीदी के नाम से मशहूर हैं।
 
सितार में विशारद, सकारात्मक विचारों से लबरेज, मुस्कान की रंगीन बूंद होठों पर सजाए अपने निवास 'गिरी-दर्शन' में वे आने वाले हर अतिथि का स्वागत करती है।

15 साल की उम्र में दीदी की ओपन हार्ट सर्जरी हुई। अपनी अदम्य जिजीविषा से वे इस दर्द से उबर कर सामने आई। 
 
उन्होंने तब ही ठान लिया था कि यह जो वक्त मिला है ईश्वर ने उन्हें बोनस में दिया है इसलिए अपने हर काम को वह ईश्वर को समर्पित करती चली गई। ईश्वर ने कदम-दर-कदम उनकी परीक्षा लेना तब भी नहीं छोड़ा। असाध्य रोग कैंसर से लड़कर वे कैंसर विजेता बनी। जिस सड़क दुर्घटना में उनके पति जिम्मी चले गए जनक दीदी भी उनके साथ थीं। वे सुरक्षित रहीं और जिम्मी चले गए। 

 

 
वे कहती है ' अगर मैं इतने भयावह हादसों से निकल कर भी जिंदा हूं तो अवश्य ही भगवान की कोई खास मंशा है मुझसे कुछ खास करवाने की। अब तो यही चाहती हूं कि जो भी हुनर, कला और कौशल मेरे पास है वह सब अपनी आने वाली ओजस्वी युवा पीढ़ी को हस्तांतरित कर दूं। 
 
चाहे वह प्रकृति से जुटाए रंग हो, पेपर के बने कंडे हो या सोलर एनर्जी से बनी ढेर सामग्री। वह अपनी हर दिव्य रचनात्मकता को बांट देना चाहती हैं और बांट रही हैं। 
रंगों से उनका प्राकृतिक रिश्ता...जानें अगले पेज पर 

इन दिनों शहर में जनक दीदी की खास चर्चा है। वजह है उनके द्वारा बनाए खूबसूरत प्राकृतिक रंग। वे अपनी ही बगिया से चुनचुन कर कोमल संसाधन( सब्जी, फूल और फल) जुटा रही हैं और उबाल कर-सुखाकर बना रही हैं होली के शोख रंग। उनके आशियाने में कहीं संतरा के छिलकों को पीसे जाने की सौंधी महक उठ रही है, तो कहीं उनकी सहयोगी नंदा के हाथ सुंदर गुलाबी रंगों से सने हैं पोई और चुकंदर के रस से।


 
वे कहती हैं बरसों से सबको पता है पोई का रंग, टमाटर का रंग और चुकंदर का रंग। हम बस उसका अमलीकरण कर रहे हैं। दूर-दूर से विद्यार्थी और संस्था संचालक आते हैं इन विलक्षण और सुंदर रंगों को बनाना सीखने के लिए। वे खुद खुशी के रंग में सराबोर हो जाती हैं, जब उनके द्वार पर उनसे मिलने के लिए कोई जिज्ञासु की मोहक आहट आती है। वे तुरंत ही उन्हें बताने लगती है अपने इन रंगों के लाभ और लिए चलती हैं अपने घरौंदे में सजे रचनात्मकता के कई-कई बेमिसाल रंग दिखाने के लिए।
 

आप क्षण-प्रति-क्षण मुग्ध होते चले जाते हैं उनकी मीठी वाणी और सकारात्मक विचारों से। वे सचमुच अपने सुंदर रंगों से पहले मस्तिष्क की सौम्य और सकारात्मक तरंगों से हमारे दिल में एक खास जगह बना लेती हैं।

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