कौन थे रजाकार, कैसे सरदार पटेल ने भैरनपल्ली नरसंहार के बाद Operation polo से किया हैदराबाद को भारत में शामिल?

वेबदुनिया न्यूज डेस्क
शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024 (15:27 IST)
story of razakar : लोकसभा चुनाव में एक बार फिर से ‘रजाकारों’ का भूत जिंदा हो गया है। हैदराबाद की लोकसभा सीट से बीजेपी से माधवी लता और असदुद्दीन ओवैसी आमने-सामने हैं। माधवी लता ने बयान दिया है कि महिलाएं बिना डरे सड़कों पर नहीं चल पा रही हैं। हिंदू मंदिर में प्रार्थना के बाद घर लौटना सुरक्षित नहीं है। आज भी कुछ लोग मंदिरों में पेशाब करते हैं, यह कोई मुस्लिम नहीं है, बल्कि रजाकार के आदेश के अनुसार काम करने वाला एक व्यक्ति है। माधवी लता ने असदुद्दीन ओवैसी को रजाकार बताते हुए कहा है कि उनके लोकसभा क्षेत्र में हिंदू सुरक्षित नहीं है।

जानते हैं आखिर क्‍यों एक बार फिर से रजाकार का ये भूत इस चुनाव में जिंदा हो गया है। कौन है रजाकार, हैदराबाद से क्‍या था उनका कनेक्‍शन और कैसे ऑपरेशन पोलो से उनका खात्‍मा होकर हैदराबाद का भारत में विलय हुआ। जानिए रजाकार के इतिहास की पूरी कहानी...

रजाकार कौन थे : 20वीं सदी की शुरुआत से ही हैदराबाद राज्य लगातार धार्मिक कट्टर पंथ की ओर बढ़ता जा रहा था, इसी बीच 1926 में हैदराबाद के एक सेवानिवृत्त अधिकारी महमूद नवाज खान ने मजलिस इत्तेहाद उल मुस्लिमीन यानी एमआईएम की स्थापना की, धीरे-धीरे एमआईएम एक शक्तिशाली संगठन बन गया जिसका मुख्य ध्यान अपने कार्यों के माध्यम से हिंदुओं और प्रगतिशील मुसलमानों की राजनैतिक आकांक्षाओं को हाशिए पर रखना था, जिसमें हैदराबाद को मुस्लिम राज्य बनाना भी एक मकसद था।

1938 में मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन नेता बहादुर यार जंग ने खाकी पहने एक अर्ध सैनिक स्वयंसेवी बल का गठन किया जिसे रजाकार कहा गया। रजाकार एक अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है स्वयंसेवक, अक्सर इसे अल्लाह के सिपाही के रूप में जाना जाता है, रजाकार यानी आम लोगों की ऐसी सेना जो जरूरत पड़ने पर हथियार हाथ में उठाकर आतंक मचा सके।

निजाम के आशीर्वाद से पनपे : दरअसल, रजाकार एक कट्टर खूंखार योद्धा थे जो मुसोलिनी के ब्लैक शर्ट्स और हिटलर के स्टोम सैनिकों के बराबर था और उन्हें निजाम का आशीर्वाद प्राप्त था। इन लोगों का उद्देश्य था इस्लामिक राज्य बनाना, यह डेमोक्रेसी को नहीं मानते थे, यही वजह थी कि इन लोगों का हैदराबाद में आतंक फैलने लगा।

मां हैदराबाद अमर रहे : मूल रूप से यह रजाकार अरब और पठान थे, जून 1944 में बहादुर यार जंग की मृत्यु के बाद 1946 में रजाकार की कमान कासिम रिजवी ने संभाली, रिजवी ने राज्य भर में मुस्लिम सर्वहारा वर्ग को ऐसे पैमाने पर संगठित किया जो पहले कभी नहीं देखा गया था। एक अनुमान के अनुसार 2 लाख रजाकार थे, रजाकार का आदर्श वाक्य पूरे राज्य में सुना गया "Mother Hyderabad: Painabad" जिसका मतलब था ‘मां हैदराबाद अमर रहे’

क्‍या था रजाकारों का मकसद : रजाकार यानी मिलिशिया, इसका अर्थ होता है आम लोगों की सेना। इसे इस मकसद से तैयार किया गया था, ताकि जरूरत पड़ने पर हथियार उठा सके। मूल रूप से इस सेना में भर्ती लोग अरब और पठान थे। जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल को यह बिल्कुल मंजूर नहीं था कि हैदराबाद को अलग से मुल्क बनाया जाए, वो भी भारत के उस इलाके के बीचों-बीच जहां चारों ओर हिंदुओं की आबादी थी। इसलिए सरदार पटेल ने यह बयान भी दिया था कि हैदराबाद आजाद भारत के पेट में कैंसर जैसा है।

इस्लाम का रक्षक हूं और हिंदुओं का भक्षक हूं : दरअसल, हैदराबाद एक ऐसा रजवाड़ा था जिसका निजाम एक मुसलमान था परंतु राज्य में बहुमत हिंदुओं का था। निजाम हिंदुओं से नफरत करते थे। अपनी एक कविता में निजाम ने लिखा है : ‘मैं पासबाने दीन हूं, कुफ्र का जल्लाद हूं।’ अर्थात मैं इस्लाम का रक्षक हूं और हिंदुओं का भक्षक हूं।

हिंदू विरोधी थे निजाम : बता दें कि निजाम के अंतर्गत हैदराबाद में 13 प्रतिशत ही मुसलमान थे परंतु उच्च पदों पर 88 प्रतिशत मुसलमान थे। इसी तरह 77 प्रतिशत हाकिम मुसलमान थे। हैदराबाद की आमदनी का 97 प्रतिशत हिंदुओं से वसूला जाता था। इसके बावजूद निजाम हिंदू विरोधी था। उसके हरम में 360 स्त्रियां थीं। उनमें से अधिकतम ‘काफिर’ अर्थात् गैर मुस्लिम थीं। निजाम को खुश करने के लिए उसके अधीनस्थ अफगानिस्तान से चुरा कर लाई गई 10-12 साल की गैर-मुस्लिम लड़कियां भी खरीद कर लाते थे।

रजाकारों का भैरनपल्ली नरसंहार : 15 अगस्त 1948 को देश ने स्वतंत्रता की पहली वर्षगांठ मनाई। 27 अगस्त 1948 को रजाकारों की फौज ने राज्य की पुलिस से मिलकर भैरनपल्ली गांव पर आक्रमण कर दिया। जून 1948 से ही रजाकार बार-बार भैरनपल्ली पर आक्रमण कर रहे थे। ग्रामीण स्थानीय स्तर पर संगठित होकर कुल्हाड़ी, लाठी, फरसा, गुलेल इत्यादि पारंपरिक हथियारों से उन्हें भगा रहे थे। ग्राम रक्षक टोलियां हर रात पहरा देती थीं। चरवाहे दूर-दूर तक जाकर रजाकारों के आने की सूचना देते थे। ग्रामीणों ने बहुत से गुलेली पत्थर इकट्ठे कर लिए थे। जिसको जो मिला, उसी से ग्रामीणों ने रजाकारों का जमकर मुकाबला किया। इन ग्रामीण तरीकों से ही वे रजाकारों के तीन हमले विफल करने में सफल हो गए। परंतु चौथी बार रजाकारों की संख्या बहुत बड़ी थी। ग्रामीण मुकाबला नहीं कर पाए। जनजातीय समाज का वार्षिक त्योहार बैठकुमा मनाया जा रहा था। 27 अगस्त को रजाकार और हैदराबाद स्टेट पुलिस ने मिलकर भैरनपल्ली पर आक्रमण कर दिया। ग्रामीण सुरक्षा गार्डों को पकड़ कर गोली मार दी गई। निहत्थे, निर्दोष ग्रामीणों को चुन-चुन कर, कतार में खड़ा कर मारा गया। गोलियां बचाने के लिए एक के पीछे एक खड़ा कर इकट्ठे तीन-तीन लोगों को एक ही गोली से मारा गया। औरतों को निर्वस्त्र करके मृत ग्रामीणों के पास जबरदस्ती नाच कराया गया और उनसे बलात्कार किया। अनेक स्त्रियों ने कुएं में कूदकर अपनी जान दे दी। 120 से ज्यादा लोग मारे गए। इस घिनौने अत्याचार से पूरा देश सन्‍न रह गया।
Note : यह सारी जानकारी मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट और किताबों में छपी जानकारी के आधार पर है।

रजाकारों की बर्बरता पटेल का ऑपरेशन पोलो- रजाकारों का खात्‍मा : सितंबर 1948 में भारतीय सेना ने कमान संभाली, लेकिन इसे हैदराबाद पुलिस एक्शन कहा गया, हैदराबाद पर होने जा रहे इस एक्शन को ऑपरेशन पोलो का नाम दिया गया था और ऐसा इसलिए था क्योंकि उस समय हैदराबाद में विश्व में सबसे ज्यादा 17 पोलो के मैदान थे। 13 सितंबर 1948 को मेजर जनरल जेएन चौधरी की अगुवाई में भारतीय सेना ने हैदराबाद पर कुल पांच तरफ से धावा बोला। यहां तक कि किसी तरह के हवाई हमले का तुरंत जवाब देने के लिए पोलो एयर टास्क फोर्स भी बनाई गई थी।

5 दिन में ही रजाकारों को कर दिया खत्‍म : दअरसल, रजाकारों को सिर्फ अत्याचार करना आता था, वे निहत्थे आम लोगों से लूटपाट कर सकते थे, युद्ध करना और वह भी बेहद प्रशिक्षित भारतीय सेना से उनके बस का नहीं था, ना तो उनके पास हथियार थे और ना लोग, निजाम की कोई एयरफोर्स भी नहीं थी। अंत में यह हुआ कि कुछ ही वक्त में रजाकार यह लड़ाई हार गए। रजाकारो को उम्मीद थी कि इस लड़ाई में पाकिस्तान उनका साथ देगा लेकिन इस सब के दो दिन पहले ही जिन्नाह की मौत हो गई थी, इसलिए पाकिस्तान की तरफ से हस्तक्षेप की संभावना शून्य हो चुकी थी।

18 सितंबर 1948 : हैदराबाद आर्मी ने किया सरेंडर : भारतीय सेना ने मात्र पांच दिन में ही इस अभियान को निपटा दिया, भारतीय सेना के द्वारा अनुरक्षित दस्तावेजों के अनुसार जनरल चौधरी के सामने 18 सितंबर को शाम 4 बजे मेजर जनरल एल एडरूज की हैदराबाद आर्मी ने सरेंडर कर दिया, यही नहीं निजाम के प्राइम मिनिस्टर मीर लायक अली और रजाकारों के नेता कासिम रिजवी को भी अरेस्ट कर लिया गया। इसके बाद जिस हैदराबाद को रजाकार मुस्‍लिम स्‍टेट बनाना चाहते थे, उसका भारत में विलय हो गया। हालांकि रजाकारों को लेकर भारत की राजनीति में अब भी रह रह कर बवाल होता रहता है। वतर्मान में चल रहे लोकसभा चुनावों में भी रजाकारों के आतंक पर नेताओं की बयानबाजी जारी है।
Written by Navin Rangiyal

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