हिन्‍दी कविता : क्या मैं स्त्री हूं

तृप्ति मिश्रा
कभी- कभी अचानक
याद आता है
क्या मैं स्त्री हूं?
कहां गया मेरा स्त्रीत्व?
हर वक़्त, हर ओर
पुरुष से बराबरी की
करती रहती हूं होड़
आईने में जब देखती हूं
अक्स पूछता है
क्या मैं स्त्री हूं?
हां, मैं स्त्री हूं....
सिर्फ साथ रहने के लिए
दुत्कारों के साथ रहती
बांध कर रखने के लिए
ताने हूं रोज़ सहती
बिखरते रिश्ते सहेजना
मुझे ही है क्योंकि
मैं स्त्री हूं
इन सबके बीच भी
परिवार को बढ़ाती हूं
चाहे खुद थक के आऊं
बच्चों को भी पढ़ाती हूं
जो सबकी पसंद है
वही अब मेरी है
मैं स्त्री हूं
अलसुबह से देर रात
मशीन सी भागती हूं
मरे अस्तित्व के साथ
आधी रात जागती हूं
मर्दानी सोच के बीच
अपना वजूद बांटती हूं
आसमान ताकती हुई
खुद से पूछती हूं
क्या मैं स्त्री हूं?

सम्बंधित जानकारी

Show comments

सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है आंवला और शहद, जानें 7 फायदे

थकान भरे दिन के बाद लगता है बुखार जैसा तो जानें इसके कारण और बचाव

गर्मियों में करें ये 5 आसान एक्सरसाइज, तेजी से घटेगा वजन

वजन कम करने के लिए बहुत फायदेमंद है ब्राउन राइस, जानें 5 बेहतरीन फायदे

गर्मियों में पहनने के लिए बेहतरीन हैं ये 5 फैब्रिक, जानें इनके फायदे

फ़िरदौस ख़ान को मिला बेस्ट वालंटियर अवॉर्ड

01 मई: महाराष्ट्र एवं गुजरात स्थापना दिवस, जानें इस दिन के बारे में

चित्रकार और कहानीकार प्रभु जोशी के स्मृति दिवस पर लघुकथा पाठ

गर्मियों की शानदार रेसिपी: कैसे बनाएं कैरी का खट्‍टा-मीठा पना, जानें 5 सेहत फायदे

Labour Day 2024 : 1 मई को क्यों मनाया जाता है मजदूर दिवस?

अगला लेख