मित्रता दिवस पर कविता: सहेलियां जब मिलती हैं...

शैली बक्षी खड़कोतकर
सहेलियां जब मिलती हैं...
हंसी तितलियों-सी उड़ती है
बातें झरने-सी झरती है
आंखें अनकहे राज़ सुनाती है
...सहेलियां जब मिलती हैं। 
 
हवा कुछ ज्यादा इठलाती है
रात जाने कौन-सी रागिनी गाती है
दीवारें धीमे-धीमे गुनगुनाती हैं
...सहेलियां जब मिलती हैं... 
 
चिरैयों-सी चहकती हैं
जूही-सी महकती हैं
रूठती-मनाती, ठुनकती हैं
...सहेलियां जब मिलती हैं।
 
दीवारें खामोशियां बुनती हैं
हवा भी चुप-सी गुज़र जाती है
हंसी किस बियावान में खो जाती है
....सहेलियां अब कम मिलती हैं। 
 
किसी रात जी भर बतियाती हैं
फिर जूही-चिरैया बन जाती है
बंद आंखों में रोशनी भर जाती है
...सहेलियां ख्वाबों में मिलती हैं...' 

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