कविता : दुख नगरी

Webdunia
- कविता नागर
 
दुख नगरी से मन है, भागे
जाना चाहे है सुख नगरी
ईश्वर की इच्छा पर निर्भर,
जैसे भर दे जीवन गगरी।
 
दुख और सुख जीवन के अंग।
रहना है दोनों के संग,
दुख करता परिमार्जित मन को।
जीवन का जब बदले रंग।
 
दुख की बदली जब छंट जाए,
निकले सुख की धूप सुनहरी,
कोमल मन की वाष्प है उड़ती
सुख की धूप मिले फिर गहरी।
 
अपनों की पहचान बताएं,
दुख है जब जीवन में आए।
सच्चा साथी मिलता तब है,
बनावटी तो भागे जाए।
 
मन को अपनी ढाल बना लो।
बड़ा सजग है, ये मन प्रहरी।
जैसे भी फिर पलछिन आएं,
रुके नहीं बहे मन लहरी।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

8 वेजिटेरियन फूड्स जो नैचुरली कम कर सकते हैं बैड कोलेस्ट्रॉल, जानिए दिल को हेल्दी रखने वाले सुपरफूड्स

सोते समय म्यूजिक सुनना हो सकता है बेहद खतरनाक, जानिए इससे होने वाले 7 बड़े नुकसान

चाय कॉफी नहीं, रिफ्रेशिंग फील करने के लिए रोज सुबह करें ये 8 काम

क्या आपको भी चीजें याद नहीं रहतीं? हो सकता है ब्रेन फॉग, जानिए इलाज

क्या है सिटींग वॉकिंग का 2 पर 20 रूल? वेट लॉस और ब्लड शुगर मैनेज करने में कैसे कारगर?

सभी देखें

नवीनतम

बाल कविता: इनको करो नमस्ते जी

डिजिटल युग में कविता की प्रासंगिकता और पाठक की भूमिका

ध' अक्षर से तलाश रहे हैं बेटे का नाम, ये हैं अर्थपूर्ण और आकर्षक विकल्प

मैंगो फालूदा आइसक्रीम रेसिपी: घर पर बनाएं स्वादिष्ट आम फालूदा

युद्ध या आतंकवाद, सबसे ज्यादा घातक कौन?

अगला लेख