lockdown poem : संभाल कर रखिए जनाब ये फ़ुरसत के लम्हें

शैली बक्षी खड़कोतकर
poem on lockdown

संभाल कर रखिए जनाब ये फ़ुरसत के लम्हें
बड़ी क़ीमत अदा कर ये दौर ए सुकूं पाया है
 
अपने हाथों से दे रहे थे ज़ख्म बेहिसाब
कुदरत ने तो बस आज आईना दिखाया है
 
सिमट आए है रिश्ते चार दिवारी में
खौफ ने ही सही, मकान को घर तो बनाया है
 
मुद्दतों बाद खुश है आज बूढ़ा दरख़्त
शाख से टूटे पत्तों को कोई रौंदने नहीं आया है
 
थम गया है शोर ए रफ़्तार जमाने का
ये कौन सा पंछी मेरे आंगन में चहचहाया है
 
आ भुला दे खुद को इन खामोश फिज़ाओं में
खुद को खोया जिसने उसी ने खुद को पाया है...

सम्बंधित जानकारी

Show comments

इस चाइनीज सब्जी के आगे पालक भी है फैल! जानें सेहत से जुड़े 5 गजब के फायदे

आइसक्रीम खाने के बाद भूलकर भी न खाएं ये 4 चीज़ें, सेहत को हो सकता है नुकसान

सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है नारियल की मलाई, ऐसे करें डाइट में शामिल

लू लगने से आ सकता है हार्ट अटैक, जानें दिल की सेहत का कैसे रखें खयाल

जल्दी निकल जाता है बालों का रंग तो आजमाएं ये 6 बेहतरीन टिप्स

AC का मजा बन जाएगी सजा! ये टेंपरेचर दिमाग और आंखों को कर देगा डैमेज, डॉक्टरों की ये सलाह मान लीजिए

गर्मी में फलों की कूल-कूल ठंडाई बनाने के 7 सरल टिप्स

घर में नहीं घुसेगा एक भी मच्छर, पोंछे के पानी में मिला लें 5 में से कोई एक चीज

क्या कभी खाया है केले का रायता? जानें विधि

जीने की नई राह दिखाएंगे रवींद्रनाथ टैगोर के 15 अनमोल कथन

अगला लेख