रंगपंचमी 2020 : रंगों भरी पंचमी पर देवता भीगते हैं रंगों से, जानिए महत्व

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रंग पंचमी होली का ही समापन रूप है जो देश के कई क्षेत्रों में चैत्र मास की कृष्ण पंचमी को मनाया जाता है। दरअसल होली का जश्न कई दिनों तक चलता है और इसकी तैयारियां होली के दिन यानि फाल्गुन पूर्णिमा से लगभग एक महीने पहले शुरू हो जाती है। फाल्गुन पूर्णिमा को होलिका दहन के पश्चात अगले दिन सभी लोग उत्साह में भरकर रंगों से खेलते हैं। 
 
रंगों का यह उत्सव चैत्र मास की कृष्ण प्रतिपदा से लेकर पंचमी तक चलता है। इसलिये इसे रंग पंचमी कहा जाता है। रंग पंचमी कोंकण क्षेत्र का खास त्योहार है महाराष्ट्र में तो होली को ही रंग पंचमी कहा जाता है। 
 
रंग पंचमी के दिन जो भी रंग इस्तेमाल किए जाते हैं, जिन्हें एक दूसरे पर लगाया जाता है,  हवा में उड़ाया जाता है उससे विभिन्न रंगों की ओर देवता आकर्षित होते हैं।  इससे ब्रह्मांड में सकारात्मक तंरगों का संयोग बनता है व रंग कणों में संबंधित देवताओं के स्पर्श की अनुभूति होती है।
 
पुराणों में वर्णन मिलता है कि इस दिन देवता गीले रंगों की होली खेलते हैं और एक दूजे को रंगों से भिगोते हैं। 
 
महाराष्ट्र में रंगवाली होली यानि धुलंडी से लेकर पंचमी तिथि तक जमकर होली खेली जाती है। रंग पंचमी इस पर्व का अंतिम दिन होता है। यह मछुआरों के लिए भी बहुत खास होता है इस दिन सब नाचने गाने में मस्त होते हैं। रंग पंचमी पर एक विशेष प्रकार का मीठा पकवान भी घरों में बनाया जाता है जिसे पूरनपोली कहा जाता है। जगह-जगह पर दही-हांडी की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं जिसमें महिलाएं मटकी फोड़ने वालों पर रंग फेंकती हैं ताकि वे अपने उद्देश्यों में सफल न हो सकें। जो भी मटकी फोड़ने में कामयाब होता है उसे पुरस्कार से नवाज़ा जाता है और वह होली किंग ऑफ द ईयर कहलाता है।
 
असल में रंग पंचमी के जरिए एक प्रकार से तेजोमय सगुण स्वरूप का रंगों के माध्यम से आह्वान भी किया जाता है। रंगपंचमी अनिष्टकारी शक्तियों पर विजय प्राप्ति का उत्सव भी है। रज-तम के विघटन से दुष्टकारी या कहें पापकारी शक्तियों का उच्चाटन भी इस दिन होता है।
 
मध्य प्रदेश के इंदौर में रंगपंचमी को पारंपरिक रूप से मनाया जाता है। इस दिन पूरे शहर में रंगारंग जुलूस निकाले जाते हैं। यहां होली के पश्चात रंग पंचमी के दिन पुन: एक दूसरे पर रंग उड़ेले जाते हैं। गाजे-बाजे के साथ जुलूस की शक्ल में लोग निकलते हैं इस जुलूस को गेर कहा जाता है। इसमें सभी धर्म व जातियों के लोग शामिल होते हैं। पूरा इंदौर इस दिन विभिन्न रंगों में रंगा नजर आता है और सांस्कृतिक उत्सवों की धूम मची रहती है।
 
इसके अलावा देश के अन्य हिस्सों में भी इस दिन धार्मिक सांस्कृतिक उत्सव आयोजित किए जाते हैं। 

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