बाल कविता : प्रात:काल

अंशुमन दुबे (बाल कवि)
Sun
 
निशा के अंधेरे के पश्चात्,
फिर से सुबह आ जाती है।
घोर अंधकार की काली रात,
फिर पराजय पाती है।
 
सूरज प्रात: उद‍ित है होता,
करने रोशनी का उजियारा।
किरणें देती हैं हमें प्रेरणा,
दूर हो जाता है आलस सारा।
 
सुंदर पुष्प सर उठाए उपवन में,
जैसे रंग-बिरंगे खेत लहरा रहे हों।
चहचहाते पक्षियों की आवाज गगन में,
जैसे मधुर गीत गुनगुना रहे हों।
 
नदी के निर्मल जल पर,
पेड़ों का प्रतिबिम्ब उभर आता है।
गलियों में आभा का प्रवास और,
हर पत्ता प्रफुल्लित नजर आता है।
 
रात्रि का साम्राज्य खो जाता है,
अंधकार आंखें मूंद सो जाता है।
प्रकृति सुंदरता के चरम पर होती है,
और सारा संसार सुंदर हो जाता है।
 
साभार- छोटी-सी उमर (कविता संग्रह)
 

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

जानिए कैसे मंगोल शासक अल्तान खान की वजह से शुरू हुई थी लामा परंपरा? क्या है दलाई लामा का इतिहास

Hustle Culture अब पुरानी बात! जानिए कैसे बदल रही है Work की Definition नई पीढ़ी के साथ

ग्लूटाथियोन बढ़ाने के लिए इंजेक्शन या दवाइयां खाने से बेहतर है खाएं ये फल और सब्जियां, जानें कुदरती उपाय

सावन मास में शिवजी की पूजा से पहले सुधारें अपने घर का वास्तु, जानें 5 उपाय

सिरदर्द से तुरंत राहत पाने के लिए पीएं ये 10 नैचुरल और स्ट्रेस बस्टर ड्रिंक्स

सभी देखें

नवीनतम

सावन में क्यों नहीं करना चाहिए मांस-मदिरा का सेवन? जानिए 5 वैज्ञानिक और स्वास्थ्य संबंधी कारण

बारिश में जॉगिंग या रनिंग करना कितना सेफ है? जानिए फायदे, खतरे और जरूरी सावधानियां

बिस्किट और टोस्ट नहीं, चाय के साथ ये 5 टेस्टी और हेल्दी फूड्स हैं बेस्ट स्नैक

शिक्षाप्रद कहानी: तेनालीराम की चतुरता से बची राजा की जान

फिटनेस के जुनून से बढ़ सकता है हार्ट अटैक का खतरा, वर्कआउट के समय जरूरी है ये सावधानी

अगला लेख