बिहार के कई जिलों में हैंडपंप से लेकर तालाब तक सब सूखे

बिहार में बक्सर से कहलगांव तक गंगा समेत कई नदियों में उफान है। कई जिलों पर बाढ़ का खतरा है। दूसरी तरफ कई जिलों में सूखे जैसी स्थिति है। खेतों में दरारें हैं, हैंडपंप सूखे हैं। शहर से गांव तक पानी के लिए हाहाकार मचा है।

DW
शनिवार, 26 जुलाई 2025 (07:57 IST)
मनीष कुमार
दरभंगा, सीतामढ़ी, मधुबनी, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, शिवहर और पूर्वी व पश्चिमी चंपारण जिले के अधिकांश इलाकों का यही हाल है। सीतामढ़ी जिले के 80 फीसदी हिस्से में पानी की भारी किल्लत है। शहर के 30 से अधिक वार्डों में पेयजल का संकट बना हुआ है। वाटर लेवल एक से ढाई फीट नीचे जाने से हैंडपंप या तो सूख गए हैं या फिर बहुत कम पानी निकल रहा है। 
 
सीतामढ़ी शहर के एक मंदिर के पुजारी तेजपाल शर्मा कहते हैं, 'मंदिर में 240 फीट बोरिंग कर मोटर लगा हुआ है, लेकिन पानी नहीं आ रहा है।' रीगा प्रखंड के किसान शिवानंद पासवान का कहना है कि खेतों के लिए पानी तो दूर अब हैंडपंप से भी पानी नहीं निकल रहा है। धान की फसल बचाने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा।
 
जिले में कुछ लोग जल संकट से परेशान हो कर आंदोलन पर उतारू हैं। एक गांव के मुखिया अनुज कुमार कहते हैं, 'आंदोलन की पूर्व संध्या पर गुरुवार को हम लोगों ने मशाल जुलूस निकाला। अधिकारियों को बताते-बताते थक गए हैं। कोई नहीं सुन रहा।'
 
पानी की किल्लत से परेशान लोगों ने कहीं सरकारी दफ्तरों के बाहर प्रदर्शन तो कहीं सड़कों को जाम किया है। लोगों का कहना है कि  हर घर नल का जल योजना के तहत लगे पाइपलाइन से भी पानी नहीं आ रहा। सीतामढ़ी के जिलाधिकारी रिची पांडेय का कहना है, 'जिला प्रशासन इस आपात स्थिति से निपटने का युद्ध स्तर पर प्रयास कर रहा है। जिले के अधिकांश प्रखंड जल संकट की चपेट में हैं। हैंडपंप को भी दुरुस्त किया जा रहा है। टैंकरों से पानी पहुंचाया जा रहा है।'
 
सूख गए सैकड़ों हैंडपंप, टैंकर से आ रहा है पानी
दरभंगा जिले के सभी 18 ब्लॉक में गंभीर पेयजल संकट है। पिछले साल की तुलना में  कई जगहों पर वाटर लेवल दो फीट नीचे खिसक गया है। स्थानीय निवासी रामदेव झा कहते हैं, 'पानी के लिए त्राहिमाम है। लोग आक्रोशित हैं। दर्जनों हैंडपंप सूख चुके हैं। लोग दूर-दूर से साइकिल, बाइक से या सिर पर पानी ढोकर लाने को विवश हैं।'
 
कुछ लोगों ने हर घर नल का जल योजना को भी इसका जिम्मेदार बताया है। दरभंगा के एक गांव के पूर्व मुखिया सुनील चौधरी का कहना है, 'इस योजना के तहत बिना जांच-पड़ताल किए काफी संख्या में बोरिंग किए जाने से वाटर लेवल नीचे चला गया है। इस कारण ही हैंडपंप सूखने लगे। हमारे पंचायत में तो एक भी हैंडपंप काम नहीं कर रहा।'
 
बारिश के लिए भगवान से गुहार
समस्तीपुर, पूर्वी और पश्चिमी चंपारण का भी यही हाल है। बगहा में तो लोगों ने बारिश के लिए मसान नदी के किनारे रेत पर तपती धूप में नमाज पढ़ी, वहीं एक जगह सैकड़ों ग्रामीणों ने मानव श्रृंखला बना भगवान शिव पर जल चढ़ाया। किसान युगल महतो कहते हैं, "खेत सूख चुके हैं, जल्द वर्षा नहीं हुई तो फसल पूरी तरह सूख जाएगी।"
 
पश्चिम चंपारण जिले में जनवरी से अब तक मात्र 33.44 प्रतिशत बारिश होने से खेतों में दरारें दिखने लगी हैं। सावन माह में ही सूखे की स्थिति हो गई है। जहां 809 एमएम वर्षा होनी चाहिए, वहां मात्र 270 एमएम बारिश ही हुई है। जिले के किसान रमेंद्र यादव व रूपेश महतो कहते हैं, 'इस साल मई महीने को छोड़ दें तो अभी तक अच्छी बारिश नहीं हुई है। गन्ने से लेकर धान तक की फसल बचाने को लोग परेशान हैं।"
 
मधुबनी जिले में भूजल स्तर औसतन 15 फीट नीचे चला गया है और यह क्रम अभी जारी है। स्थानीय निवासी विजय श्री टुन्ना कहते हैं, 'नगर निगम परिक्षेत्र के अलावा  बासोपट्टी, रहिका, भवानीपुर, साहरघाट में स्थिति काफी गंभीर है। सहारघाट में तो लोगों ने बुधवार को चार घंटे तक हाईवे जाम किया। पिछले दो-तीन साल से ऐसा हो रहा है। हैंडपंप का सूखना ज्यादा चिंताजनक है। अभी पानी खरीद कर पी रहे, कुछ दिनों बाद बाढ़ आने से पानी में डूबेंगे।'
 
कम बारिश ने बिगाड़े हालात
बिहार के करीब पंद्रह जिले ऐसे हैं, जहां पिछले दो हफ्ते से बारिश नहीं हुई है। मानसून भी कमजोर है, जिससे कहीं भी भारी वर्षा नहीं हो रही। अभी तक जहां करीब 425 एमएम बारिश होनी चाहिए थी, वहां 43 प्रतिशत कम यानी करीब 240 एमएम वर्षा ही हुई है। इस वजह से सूखे जैसी स्थिति बन गई है। भूगोलवेत्ता प्रो। कौशलेश कुमार के अनुसार, ' इस बार ट्रफ लाइन का मूवमेंट उत्तर की जगह दक्षिण की ओर ज्यादा सक्रिय रहा, इस वजह से उत्तर बिहार की बजाय दक्षिणी हिस्से में अधिक बारिश हुई। उत्तर बिहार के इलाके में अच्छी और नियमित वर्षा नहीं हुई।'
 
वेदर सिस्टम भी झारखंड व उड़ीसा के ऊपर अधिक सक्रिय रहा, जिससे इससे सटे इलाकों में भारी बारिश हुई। सीतामढ़ी जिले में तो जुलाई माह में 70 प्रतिशत कम वर्षा हुई है। मधुबनी में इस महीने औसतन 550 एमएम की जगह मात्र 280 एमएम बारिश हुई है।
 
रिचार्ज नहीं हो रहा ग्राउंड वाटर
पर्यावरण संरक्षण समिति के अध्यक्ष उमेश प्रसाद कहते हैं, 'वाटर रिचार्ज की प्रक्रिया काफी धीमी होती है। पानी के एक लेयर से दूसरी लेयर तक पहुंचने में करीब छह से सात साल तक का समय लग जाता है। ऐसे में जब लगातार नीचे से तेजी से पानी खींचा जा रहा हो और ऊपर से रिचार्ज करने की गति धीमी हो तो वाटर लेवल का गिरना स्वाभाविक है।'
 
घरेलू उपयोग, खेती, निर्माण कार्यों तथा अव्यवस्थित जल निकासी के कारण मिट्टी में जाने से पहले ही बहुत पानी बर्बाद हो जाता है। भारी संख्या में निजी बोरिंग भी स्थिति को और भयावह बना रहे हैं। आइआइटी, पटना की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार अगर स्थिति यही बनी रही बिहार में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता 2050 तक घटकर मात्र 635 घन मीटर रह जाएगी, जो पहले से ही चिंताजनक 1006 घन मीटर से काफी कम है।
 
खत्म हो रहे हैं वाटर बॉडीज
तालाब बचाओ अभियान के संयोजक नारायण जी चौधरी कहते हैं, 'दरभंगा शहर में पेयजल संकट 1995-96 से शुरू हुआ। गर्मी के समय दोपहर के वक्त हैंडपंप से पानी निकलना कम हो जाता था, जबकि रात में 10-11 बजे के करीब ठीक हो जाता था। यानी उस समय से धरती पानी कम होने का संकेत देने लगी थी। लेकिन, पिछले 30 सालों में हमने ग्राउंड वाटर रिचार्ज करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया।'
 
धीरे-धीरे ग्रामीण इलाकों में भी पेयजल का संकट हो गया है। हैरानी की बात तो यह है कि कीरतपुर जो कोसी-कमला नदी के बीच में है, कुशेश्वरस्थान, जहां कई नदियां मिलती है, वहां भी यह संकट है। कमला नदी की 11 धाराएं हैं, जो 35 से लेकर 130 किलोमीटर लंबी है। सरकार ने बाढ़ नियंत्रण के नाम पर इनमें से 10 धाराओं का मुंह तटबंध बना कर बंद कर दिया। इससे वेटलैंड या तालाब, नहर तक पानी फैलने से रुक गया, जिसका असर अंतत: ग्राउंड वाटर रिचार्ज पर पड़ा। 
 
1964 के डिस्ट्रिक्ट गजेटियर के अनुसार दरभंगा शहर में 300 से अधिक तालाब थे। 1989 में एसएच बाजमी ने अपनी पीएचडी के लिए 213 तालाबों का अध्ययन किया। नगर निगम अब 100 तालाब होने की बात करता है। वे कहते हैं, 'आज की तारीख में दरभंगा शहर में नौ तालाबों को भरा जा रहा है। जिसे भू-माफिया प्लाटिंग करके बेचेंगे। बीते 20 वर्षों में इस शहर के एक चर्चित माफिया ने 31 तालाबों पर कब्जा किया है।' वाटर बॉडीज जैसे-जैसे कम होते जाएंगे, ग्राउंड वाटर लेवल उतना ही नीचे जाएगा।

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