मध्य प्रदेश में अबकी बार किसान के सहारे 'सरकार'

Webdunia
सोमवार, 18 जून 2018 (13:40 IST)
- विकास सिंह
 
मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव का समय जैसे-जैसे करीब आता जा रहा है, वैसे-वैसे प्रदेश में सियासी पारा भी गरम होता जा रहा है। चुनाव से ठीक पहले नेता जहां एक-दूसरे पर सियासी हमले बोल रहे हैं, वहीं प्रदेश की सियासी फिजां में कई मुद्दे भी गरम हो रहे हैं। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य की बात करें तो इस समय प्रदेश की सियासत किसानों के आसपास घूम रही है।


सभी सियासी समीकरणों को देखने के बाद इतना तो तय लग रहा है कि साल के आखिरी यानी अक्टूबर-नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में किसान नई सरकार का भविष्य तय करने में बड़ी भूमिका निभाने जा रहे हैं। इसी के चलते प्रदेश में 15 साल से विपक्ष में बैठी कांग्रेस ने किसानों के मुद्दे को बिना किसी देरी के लपक लिया। पार्टी ने किसान आंदोलन की बरसीं पर मंदसौर में पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी की सभा कर किसान कार्ड को कैश कराने के लिए अपना दांव चल दिया है।

पिछले साल जून में किसान आंदोलन की हिंसा में मारे गए 6 पाटीदार किसानों की श्रदांजालि सभा में शामिल हुए कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने जहां एक ओर मौजूदा प्रदेश सरकार पर जमकर हमला बोला, वहीं विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी के चुनाव प्रचार अभियान का शंखनाद भी कर दिया। राहुल ने मंच से ही कांग्रेस का सबसे बड़ा चुनावी दांव चलते हुए सरकार आने पर 10 दिन के अंदर कर्ज माफी का ऐलान कर दिया। इसके साथ राहुल ने किसानों को उनकी फसल का सही दाम दिलाने का भी वादा किया।

राहुल ने किसानों से ये वादा उस मंदसौर से किया जहां पिछले एक साल से किसानों के हालात सहीं नहीं हैं। मध्य प्रदेश की सियासत में ये माना जाता है कि जिस पार्टी पर मालावा-निमाड़ की जनता ने भरोसा दिखाया, उसके हाथों में ही सत्ता की चाबी होती है। अगर बात करें मालवा अंचल के किसानों की तो इस क्षेत्र का किसान प्राय: नकदी फसल की खेती पर जोर देता रहा है।

पिछले कुछ सालों से इस क्षेत्र का किसान परेशान है, वजह सोयाबीन, मूंग, प्याज, लहसन की बंपर पैदावार के बाद भी उसका उचित मूल्य नहीं मिल पाना। किसान परेशान है, पैदावार तो बंपर हुई, लेकिन उसको मंडियों में अपनी फसल का लागत मूल्य भी नहीं मिल पा रहा है। मजबूर होकर किसानों को अपनी फसल को या तो फेंकना पड़ रहा है या खेतों में ही छोड़ना पड़ रहा है।

ऐसा नहीं है कि किसानों को पहली बार इन परेशानियों से जूझना पड़ रहा है। पिछले साल जून में हुए किसान आंदोलन से पहले भी कुछ इसी तरह के हालात थे, तब देखते ही देखते पूरा पश्चिमी मध्य प्रदेश किसान आंदोलन की आग में जल उठा था। हिंसा के दौरान मंदसौर के हाटपिपलिया में हुई हिंसा में 6 किसानों की मौत फायरिंग में हो गई थी। मध्य प्रदेश में किसानों की लंबे समय से मांग थी कि शिवराज सरकार स्वामीनाथन समिति की रिपोर्ट लागू करते हुए किसानों को फसल की लागत डेढ़ गुना पैसा बतौर समर्थन मूल्य के तौर पर दें। इसके साथ ही किसानों की एक बड़ी मांग कर्ज माफी की भी है।

किसानों के गुस्से को भांप कर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उनको उनकी फसल का उचित मूल्य देने के लिए भावांतर जैसी योजना लाए, जिसमें किसानों को उनकी फसल को सही दाम देने का वादा किया जा रहा है, लेकिन भावांतर जैसी योजना के बाद किसानों का गुस्सा खत्म नहीं हुआ। किसान अब भी अपनी फसल का सही दाम नहीं मिलने की बात कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर किसान कर्जमाफी की मांग लगातार करते आ रहे हैं।

चुनावी साल में एक बार फिर किसान संगठनों ने सरकार की मुश्किलें बढ़ाते हुए 1 जून से 10 जून तक प्रदेश में 'गांव बंद' का ऐलान किया। इस दौरान प्रदेश के कई जगह किसान गुस्से में दिखाई दिए। जहां एक ओर किसानों का गुस्सा बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है, वहीं सत्ता की वापसी की कोशिश में लगी कांग्रेस को बीजेपी को घेरने का एक बड़ा मुद्दा मिल गया है। कांग्रेस ने इस मुद्दे को बखूबी भुनाते हुए मंदसौर में राहुल गांधी की रैली कराकर बीजेपी पर एक बड़ा मनोवैज्ञानिक दबाव बना दिया है।

राहुल की कर्जमाफी के दांव के बाद बीजेपी एक तरह से बैकफुट पर दिखाई दे रही है। बीजेपी ने डैमेज कंट्रोल करने के लिए शनिवार को भोपाल में मुख्यमंत्री निवास में पार्टी ने मंत्रियों, विधायकों, जिलाध्यक्षों, संगठन मंत्री और मोर्चा अध्यक्षों की बड़ी बैठक बुलाई। बैठक में किसानों की कर्जमाफी सबसे बड़ा मुद्दा रहा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नेताओं से किसानों के बीच जाकर पार्टी का पक्ष पुरजोर तरीके से रखने के निर्देश दिए।

मुख्यमंत्री ने कहा कि नेता और कार्यकर्ता किसानों के बीच जाकर प्रदेश सरकार की किसान हितैषी योजनाओं को सही तरीके से रखें। इतना ही नहीं रविवार को जबलपुर में हुए किसान महासम्मेलन में खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने को किसान का सबसे बड़ा हितैषी बताते हुए कहा कि किसानों को उनकी फसल का सही दाम मिलेगा। सीएम ने किसानों को तत्काल राहत देते हुए गेहूं का समर्थन मूल्य 1735 के बाद 265 प्रति क्विटंल बोनस देने की घोषणा भी कर दी।

इसके साथ ही मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश में पहले ही किसानों को जीरो परसेंट ब्याज दर पर लोन दिया जा रहा है। सीएम ने कहा कि खेती को लाभ का धंधा बनाने और किसान का कल्याण उनकी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। पहले राहुल गांधी का कर्जमाफी का वादा करना उसके बाद बीजेपी सरकार को खुद को किसान को सबसे बड़ा हितैषी बताना, इस बात को बताने के लिए पर्याप्त है कि किसान प्रदेश की सियासत में कितनी बड़ी भूमिका अदा करता है।

मध्य प्रदेश की लगभग साढ़े 8 करोड़ की आबादी में लगभग 70 फीसदी किसान वोटर हैं। वहीं प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में 170 सीटें ग्रामीण वोटरों की बहुल्यता वाली सीटें हैं, जहां किसानों का वोट निर्णायक होता है। ऐसे में इतना तो तय है कि कांग्रेस 15 साल बाद एक बार किसानों के भरोसे मध्य प्रदेश में सत्ता की वापसी की कोशिश में है, तो दूसरी ओर बीजेपी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को किसान का बेटा बताते हुए अपने इस मजबूत वोट बैंक में किसी भी प्रकार की विपक्ष की सेंध लगाने की जुगत को नाकाम करने में जुटी हुई है।

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