Human body : हमारा शरीर वैज्ञानिक मशीन है, चमत्कार जानकर हैरान रह जाएंगे

डॉ. छाया मंगल मिश्र
हम अपने शरीर को कितना जानते हैं,आइए आज इस पर चर्चा करते हैं
 
मस्तिष्क वह यंत्र जिससे हम सोचते हैं, कि हम सोचते हैं।  इस  मस्तिष्क की तंत्रिकाओं में आवेग 274 किमी प्रति घंटे की गति से चलता है या कि आप सोच सकते हैं कि आपने बहुत दिनों से कोई सपना नहीं देखा , जबकि आपने सपने देखे हैं पर आप  90% सपने भूल जाते हैं।

अब जैसे ही आप इस वाक्य को पढ़ते हैं, आपके शरीर में 50,000 कोशिकाएं मर गई हैं और उनका स्थान दूसरी कोशिकाओं ने ले लिया है।  मानव शरीर से बड़ी वैज्ञानिक मशीन धरती पर कोई और है ही नहीं। आठ चक्र और नौ द्वारों वाला यह मानव शरीर देवों की अयोध्यापुरी है। इसीलिए हमारे शरीर को देवालय कहा गया है।
 
औसत मानव शरीर में इतना सल्फर होता है कि एक कुत्ते पर मौजूद सारे कीटों को मार सके। 900 पेंसिल बनाने के लिए पर्याप्त कार्बन, एक खिलौना तोप को आग लगाने के लिए पर्याप्त पोटेशियम, साबुन के सात बार बनाने के लिए पर्याप्त वसा और एक 50 लीटर बैरल भरने के लिए पर्याप्त पानी होता है।
 
हमारे  शरीर में एक हिस्सा है जहां रक्त की आपूर्ति नहीं है। यह सही है! यह आंख का कॉर्निया है जो हवा से सीधे ऑक्सीजन प्राप्त करता है। निश्चय ही शरीर सर्वश्रेष्ठ धर्म साधन है।
 
 यदि हमें बहुत कुछ याद रहता है तो एक मानव मस्तिष्क में एक मेमोरी क्षमता होती है जो हार्ड ड्राइव पर चार से अधिक टेराबाइट्स के बराबर होती है और, हमारा मस्तिष्क सुरक्षित है - 29 हड्डियों से बना है, उसी से घिरा हुआ है। इसलिए स्वामी विवेकानंद कह गए हैं कि शरीर और मन साथ ही साथ उन्नत होना चाहिए।
 
 हमें प्यास का एहसास  तब होता  है जब पानी की कमी शरीर के वजन के 1% के बराबर होती है। 5% से अधिक का नुकसान बेहोशी का कारण बन सकता है, और 10% से अधिक निर्जलीकरण मृत्यु का कारण बनता है। क्योंकि देह ही मृत्यु का कलेवा है। यह देह तो केवल आत्मा रूपी अतिथि का विश्राम गृह है।
 
 बालों को यदि  पूरे जीवनकाल के लिए बढ़ने की अनुमति दी जाती है, तो किसी व्यक्ति के बालों की लंबाई 725 किमी हो सकती है - यह देखते हुए कि बाल प्रति वर्ष 6 इंच बढ़ते हैं। जन्म के समय, मानव मस्तिष्क में 14 बिलियन कोशिकाएं होती हैं। यह संख्या किसी व्यक्ति के जीवनकाल में नहीं बढ़ती है। 
 
25 वर्षों के बाद, कोशिकाओं की संख्या हर दिन 100,000 से गिर जाती है। लगभग 70 कोशिकाएं मिनटों में मर जाती हैं । 40 वर्षों के बाद, मस्तिष्क की गिरावट तेज हो जाती है, और 50 साल के बाद न्यूरॉन्स (यानी तंत्रिका कोशिकाएं) सिकुड़ जाती हैं और मस्तिष्क छोटा हो जाता है। कहते हैं जन्म से क्रमशः दस वर्षों बाद जिनका ह्रास होता है वे हैं- बाल्यावस्था, शरीर की वृद्धि, शारीर की छवि, मेधा, त्वचा, दृष्टि, वीर्य, बुद्धि, कर्मेन्द्रिय, स्मरण शक्ति व जीवन।
 
 सुबह अपने आप को मापें, फिर रात में। आप सुबह में लम्बे होते  हैं क्योंकि दिन के दौरान आपकी हड्डियों में उपास्थि कार्टिलेज हड्डियों को दबाव बना कर छोटा कर देता है। प्रतिक्षण यह शरीर नष्ट होता रहता है पर दिखाई नहीं देता। जब हम सांस लेते हैं, तो अधिकांश हवा एक नथुने से अंदर और बाहर जा रही होती है। हर कुछ घंटों में, कार्यभार दूसरे नथुने में बदल जाता है। साथ ही, आपकी नाक 1 ट्रिलियन प्रकार की गंध का पता लगा सकती है। धम्मपद में कहा है कि अस्थियों का एक नगर बनाया गया है, जो मांस और रक्त से लेप गया है।जिसमें जरा, मृत्यु, अभिमान और डाह छुपे हुए हैं।
 
हमारा शरीर महामंदिर है।स्वस्थ शारीर आत्मा का अतिथि-भवन है। अस्वस्थ शरीर इसका कारागार। हमारा शरीर हमारी आत्मा का सितार है, अब यह हमारे हाथ की बात है कि हम उससे मधुर स्वर झंकृत करते हैं या बेसुरी आवाजें निकालते हैं।

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