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कश्मीरी पंडितों में कैसे निभाई जाती है शादी की रस्म

Webdunia
मंगलवार, 22 मार्च 2022 (16:14 IST)
kashmiri wedding ceremony: कश्मीरी पंडितों में भी विवाह तो उसी तरह होता जिस तरह की अन्य हिन्दुओं में होता है, लेकिन विवाह में स्थानीय संस्कृति और लोकपरंपरा का प्रभाव होने के कारण यह थोड़ी बहुत भिन्नता के साथ ही बहुत ही मजेदार भी है। आओ जानते हैं कश्मीरी पंडितों में कैसे निभाई जाती है शादी की रस्में।
 
 
1. कश्मीरी विवाह रस्म बहुत ही उल्लासपूर्ण और अंतरंग, और अद्वितीय तरीके से निभाई जाती हैं। विवाह की औपरारिक शुरुआत सगाई से होती है जिसे कासमसुखा, कासमड्री या वन्ना समारोह कहते हैं। 
 
2. ज्योतिषाचार्य द्वारा कश्मीरी कैलेंडर के अनुसार एक तिथि तय करने के बाद दूल्हा-दुल्हन दोनों के परिवार के लोग एक मंदिर में मिलते हैं और एक साथ पूजा अर्चना करते हैं। 
 
3. बुजुर्ग अपने परिवारों में एक-दूसरे का अभिवादन और स्वागत करते हैं। दोनों पक्ष एक दूसरे को फूलों का आदान-प्रदान करते हैं। दुल्हन का परिवार आमंत्रितों को पारंपरिक शाकाहारी भोजन के साथ स्वागत करता है। 
 
4. कासमसुखा के बाद किसी भी दिन दुल्हन का परिवार कुल 51 थाली उर्फ थाल भेजता है जिसमें फल, ड्राई फ्रूट्स, मिठाई और अन्य खाद्य सामग्री दूल्हे के घर जाती है।
 
 
5. इसके बाद लिवुन और क्रोल खानून अनुष्ठान होता है। लिबुन में में दोनों ही घरों की साफ सफाई होती है और एक दूसरे को उपहार वितरित करते हैं। बाद में दोनों घरों को ताजे फूलों से सजा दिया जाता है, जिसे क्रोल खानून कहते हैं। 
 
6. क्रोन खान वाले दिन ही परिवार में खाना बनाना वाज़ा समारोह के रूप में मनाते हैं जिसमें एक ईंट और मिट्टी के चुल्हे पर वुवी नामक पकवान बनाया जाता है। आगामी शादी समारोहों के लिए सभी भोजन वुवी में तैयार किए जाते हैं। 
 
7. उपरोक्त लीवुन रस्म के बाद हर शाम संगीत समारोह रखा जाता है जिसे वानवुन के रूप जाना जाता है। मेहमान दूल्हा और दुल्हन के घर पहुंचते हैं और हर शाम पारंपरिक कश्मीरी लोक गीतों, शादी के गीतों और नृत्य के माध्यम से सामारोह को और भी आनंदमय बनाते हैं।
 
8. इसके बाद मेनज़ीरत की रस्म करते हैं जिसमें मामा और मामी दुल्हन के पैर धोते हैं। दुल्हन का सांकेतिक रूप में स्नान कराते हैं। उसके बाद मेहंदी की रस्म निभाते हैं। परिवार के अन्य सदस्य और मेहमान भी मेंहदी के लगाते हैं। इसके बाद वजा द्वारा तैयार एक शानदार भोजन किया जाता है। 
 
9. इसके बाद स्नाजरू की रस्म होती है जिसमें स्नाजरू-फूल की गहना रस्म में दूल्हे का परिवार दुल्हन को ताजे फूलों से बने खूबसूरत गहने भेजता है, जिसे वह शादी की सुबह पहनती है। साथ ही सुनहरे रंग या चांदी के कवर में सोलह श्रृंगार के सभी आइटम भी भेजता है।
 
10. दिवागोन नामक रस्म में दूल्हा अपनी दुल्हन के लिए दुल्हन अपने दूल्हे के लिए पूजा करते हैं। दूल्हा-दुल्हन अपने-अपने घरों में अलग-अलग भगवान शिव और उनकी पत्नी माता पार्वती की पूजा अर्चना करते हैं। इस दिन सभी रिश्तेदार व्रत का पालन करते हैं। पवित्र अग्नि के सामने समारोह का आयोजन करते हैं और सभी उपहार आग के सामने रखाते हैं।
 
 
11. कानिसरन नामक रस्म में पानी, दूध, चावल और दही का मिश्रण का लेप दूल्हा व दुल्हन को लगाया जाता है। दूसरे क्षेत्र में हल्दी लगाई जाती है। दूल्हा-दुल्हन इस मिश्रण के साथ स्नान करते हैं। बाद में दूल्हा-दुल्हन दोनों नए कपड़ों को धारण करते हैं।
 
12. दुरीबत नामक रस्म में दूल्हा-दुल्हन के मामा-भांजे को अपने-अपने घरों में भोज के लिए आमंत्रित करते हैं। रिश्तेदारों को दूल्हे के माता-पिता के लिए उपहार लाना होता है। इस दिन मेहमानों को पीने के लिए दूध का शरबद और इसके बाद कहवा परोसा जाता है फिर दोपहर के भोजन में पारंपरिक शाकाहारी व्यंजन होते हैं।
13. बरात ले जाने के पहले दूल्हे के चाचा पगड़ी बांधने में दूल्हे की मदद करते हैं। दूल्हे के तैयार होने के बाद परिवार की एक महिला चावल की एक थाली और दूल्हे के दाहिने कंधे पर कुछ पैसे व चावल लेकर छूती हैं। दूल्हा एक घोड़ी और उसके दल के साथ बारात के रूप में आगे बढ़ता है।
 
 
14. बारातियों का स्वागत शंखनाद के साथ भव्य तरीके से किया जाता है। दूल्हा और दुल्हन के पिता जायफल का आदान-प्रदान करते हैं। शंखनाद के साथ ही दूल्हे को मंडप तक लाया जाता है।
 
15 पुजारी दूल्हे को अपने स्थान पर प्रवेश करने से पहले द्वार पूजा के बाद मंडप पूजा करता है। बाद में दुल्हन अपने मामा के साथ विवाह मंडप में प्रवेश करती है। तब तक दूल्हा-दुल्हन एक-दूसरे को नहीं देख सकते क्योंकि उनके सिर ढके हुए होते हैं। एक बड़ा दर्पण पर्दा के नीचे रखा जाता है और जोड़े को प्रतिबिंब में एक दूसरे को देख सकते हैं। यहीं पर लगन होता है। लगन की रस्म को लगन कामिलरी कहते हैं। यह वैदिक परंपरा अनुसार ही होती है जिसमें सात फेरे लिए जाते हैं। 
 
16. दुल्हन का पिता दूल्हे के हाथों पर दुल्हन के हाथ को रखता है। इसे दूल्हे को अपनी बेटी को सौंपने की रस्म कहते हैं। उस समय अथवास नाम का एक खास कपड़ा दोनों के हाथों को ढकता है। उनके माथे पर मननमल नामक सुनहरा धागा बंधा होता है। पवित्र अग्नि या अग्नि प्रज्वलित होती है और दंपति सात फेरे या अग्नि के चारों ओर सात घेरे लेते हैं। 
 
17. समारोह की समाप्ति के बाद चावल के साथ शाकाहारी रात्रिभोज परोसा जाता है और दूल्हा-दुल्हन थाली में खाते हैं।
 
 
18. इसके बाद पॉश पुजा होती है। इसमें दूल्हा-दुल्हन को आराम से बैठने के लिए कहा जाता है और उनके सिर पर लाल कपड़ा रखा जाता है। परिवार और दोस्त दंपति के चारों ओर इकट्ठा होते हैं और वैदिक मंत्रों के साथ ही उन पर फूल या पॉश चढ़ाते हैं। शिव और पार्वती के प्रतिनिधि के रूप में उनकी पूजा होती है।
 
19. विदाई की रस्म में प्रस्थान से पहले, नवविवाहित जोड़े को एक लकड़ी के आसन पर खड़ा किया जाता है जिसे वियोग के नाम से जाना जाता है। परिवार की सबसे बड़ी महिला सदस्य उन्हें नबाद (मिश्री; या चावल) तीन बार पेश करती हैं और उन्हें माथे पर चूमती हैं। फिर दुल्हन अपने माता पिता के घर की दिशा की ओर अपने कंधों पर कच्चे चावल की एक मुट्ठी भर फेंकती है और प्रार्थना करती है कि यह घर हमेशा समृद्ध बना रहे।
 
 
20. दुल्हन का दूल्हे के घर में भव्य स्वागत होता है। दंपति को विशेष रूप से बनाए गए वियोग पर खड़ा होना होता है। फिर दूल्हे की सबसे बड़ी चाची उन्हें नाबाद खिलाती है। फिर दोनों के माथे पर बंधी मनमनमल की अदला-बदली होती। दो कबूतर नव वर-वधू जोड़े के सम्मान में हवा में छोड़े जाते हैं।
 
21. इसके बात सातरात की रस्म होती है जिसमें नव विवाहित जोड़े को एक या एक से अधिक बच्चों के साथ दुल्हन के घर जाना होता है। वहां दुल्हन के माता-पिता उन्हें नए वस्त्र भेंट करते हैं और दुल्हन को कुछ नकदी भी दी जाती है। घर लौटते वक्त ये नए कपड़े पहनते हैं। 
 
22. इसके बाद सहस्त्रामंगल की रस्म में दंपति जब दूसरी बार दुल्हन के माता-पिता के घर जाते हैं तो फिर से उन्हें नए कपड़े दिए जाते हैं। 
 
23. इसके बाद रोथ खबर की रस्म में शनिवार या मंगलवार को दुल्हन के माता-पिता अपनी बेटी के लिए एक विशाल पारंपरिक केक (रोथ) भेजते हैं और शगुन के रूप में कुछ पैसे भी भेजते हैं। इसके बाद दुल्हन केक लाने वाले व्यक्ति के साथ अपने मामा के घर चली जाती है।
 
 
24. घर अचुन की रस्म या समारोह में दुल्हन का परिवार मेहमानों के लिए मांसाहारी व्यंजनों का भव्य भोज तैयार करता है। भव्य भोजन के बाद दुल्हन वापस अपने नए घर लौट जाती है। यह एक तरह का रिसेप्शन होता है।

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