Shri Krishna 4 May Episode 2 : जब परीक्षित को पता चला अपनी मृत्यु का, कंस ने सुनी आकाशवाणी

अनिरुद्ध जोशी
निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्री कृष्णा धारावाहिक के 4 मई के दूसरे एपिसोड में राजा परीक्षित अपने महल में पहुंचते हैं और जैसे ही मुकुट उतारते हैं उन्हें अपनी गलती का भान होता है।
 
 
मुकुट उतारते ही कहते हैं अरे यह क्या कर दिया मैंने? उनकी पत्नी पूछती है ‍क्या हुआ प्राणनाथ। तब राजा कहते हैं कि मैंने घोर पाप कर दिया। रानी मैं भयभीत हो गया हूं। यह कलियुग का पहला प्रहार है। आगे क्या होगा उसी का भय है। रानी आज मेरे से एक मुनि का अपमान हुआ है। ये सब इस राज मुकुट के कारण है। यह निश्चिय ही विनाश का सूचक है।
 
रामानंद सागर के श्री कृष्णा धारावाहिक में जो कहानी नहीं मिलेगी वह स्पेशल पेज पर जाकर पढ़ें...वेबदुनिया श्री कृष्णा
 
तभी महल के द्वार पर ऋषि शमिक पहुंच जाते हैं। सैनिक उनके आगमन की सूचना देते हैं। राजा उनके चरण धोकर उनका स्वागत करते हैं और अपनी भूल के लिए क्षमा मांगकर कहते हैं कि मैं अपना अपराध स्वीकार करता हूं और आप मुझे दंड दें। शमिक ऋषि कहते हैं कि तुम सचमुच एक महात्मा हो। इसमें तुम्हारा दोष नहीं, दोष तो समय का है। इसलिए हमारे मन में यह सोचकर पीड़ा हो रही है कि जिसका दोष है उसे दंड नहीं मिलेगा लेकिन तुम्हें मिलेगा।
 
ऋषि शमिक अपने पुत्र ऋषि श्रृंगी के शाप के बारे में बताते हैं कि आज से सातवें दिन तक्षक नाग के काटने से तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी राजन। यह सुनकर रानी रोने लगती है। शमिक ऋषि कहते हैं कि विधि के धनुष से दुर्भाग्य का यह बाण निकल चुका है वह वापस नहीं होगा। मैं यही बताने आया हूं कि अब तुम्हारे पास जितना समय बचा है उसका उपयोग करो। अपने गुरुजनों से परामर्श करो। जिससे वह तुम्हें संमार्ग दिखाएं। राजन भगवान तुम्हारी आत्मा को शांति दें।
 
तब राजा परीक्षित रात्रि में ही अपने गुरु के पास पहुंचते हैं और अपनी व्यथा बताकर कहते हैं कि मैं 7 दिन में ऐसा क्या करूं कि मेरा परलोक सुधर जाए। तब गुरु कहते हैं कि भक्ति करो। जो फल योग, तपस्या और समाधी से नहीं मिलता कलियुग में वह फल श्री हरिकीर्तन अर्थात श्रीकृष्ण लीला का गान करने से सहज ही मिल जाता है। इसलिए तुम श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण और कीर्तन करो। उसमें श्रीकृष्ण की दिव्य लीलाओं का पवित्र वर्णन है। उसी के श्रवण से उत्पन्न हुई भक्ति ही तुम्हारे मोक्ष का कारण होगी। तुम वेदव्यासजी के पुत्र शूकदेवजी के पास जाओ वे तुम्हें यह कथा सुनाएंगे।
 
तब राजा परीक्षित बालक शूकदेव के पास जाकर उनके चरणों को धोकर उनसे श्रीमद्भागवत कथा सुनाने से पहले पूछते हैं कि कि हे ब्रह्मन् जो पुरुष मृत्यु के द्वार पर खड़ा हो, ऐसे मरणासन पुरुष को क्या करना चाहिए?
 
तब शूकदेवजी कहते हैं कि परीक्षित जो प्रश्न तुमने किया है उसमें लोकहित भी छिपा हुआ है क्योंकि वास्तव में सभी मनुष्य मृत्यु के द्वार पर ही खड़े होते हैं। हालांकि वो इसे जानते नहीं हैं। हे राजन! अब तुम्हारे प्रश्न का उत्तर सुनो। मृत्यु का समय आने पर मनुष्य घबराए नहीं। मृत्यु के आक्रमण के पहले ही वह वैराग्य की तलवार से शरीर की ममता को काट दें और ओम रूपी प्रणव मंत्र का मन ही मन जप करें।...इस तरह शूकदेवजी राजा परीक्षित को आत्मज्ञान की बात बताकर भक्ति योग की बात कहते हैं। हे राजन अब मैं तुम्हें भागवत की भक्ति रस कथा सुनाऊंगा। तुम्हारे अंत समय में श्रीकृष्ण भक्ति ही अमृत रस का कार्य करेगी।
 
फिर शूकदेवजी श्रीकृष्ण श्रीमद्भागवत कथा सुनाते हैं। वे कहते हैं कि मथुरा में शक्तिशाली दैत्य कंस था जो धर्म का नाश करने पर तुला हुआ था।
 
फिर संतों को कंस कोड़े मारते हुए कहता है कि कौन भगवान है बुलाओ उसे। यहां का भगवान मैं ही हूं। शूकदेवजी कहते हैं कि उसके अत्याचारों से तंग आकर माता पृथ्‍वी, नारद, बृहस्पति और अन्य देवता सहायता के लिए ब्रह्माजी के पास ‍गए। ब्रह्माजी ने उन्हें आश्वासन दिया कि कंस आदि सभी असुरों का नाश करने के लिए धरती पर भगवान के अवतार लेने का समय आ गया है। इस बार भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं धरती पर जाने का निश्‍चिय किया है।
 
शूकदेवती कहते हैं। हे राजन! भाग्य कि विडंबना तो देखो कि भगवान श्रीकृष्ण ने‍ जिसके नाश के लिए अवतार लिया वह भी कंस की बहन देवकी के गर्भ से। कंस ये नहीं जानता था। कंस ने अपनी बहन देवकी का विवाह एक यदुवंशी वसुदेव के साथ धूमधाम से किया।...अंत में माता देवकी का विवाह समारोह बताया जाता है।

कंस अपनी बहन देवकी को विदा करता है। कंस खुद अपने रथ पर दोनों को बिठाकर ले जाता है। तीनों बहुत खुश नजर आ रहे हैं। तभी रास्ते में भयंकर बिजली कड़कती है। रथ और पीछे चल रहे घुड़सवार रुक जाते हैं। कंस कहता है बिन बादल बिजली?
 
तभी आकाशवाणी होती है। हे मूर्ख कंस, हे मूर्ख कंस, हे मूर्ख कंस। यह गर्जना सुनकर कंस, देवकी और वसुदेव भयभीत हो जाते हैं। कंस कहता है कौन है हमें इस प्रकार संबोधन करने वाला? कौन है जिसे अपने प्राणों का मोह नहीं रहा। सामने आए।... फिर आकाशवाणी होती है हे परममूर्ख कंस ये क्रोध करने के समय नहीं, खेद प्रकट करने का समय है। तू अपने भाग्य में अपने हाथों आग लगाने जा रहा है। हे मूर्ख जिसे तु इ‍तनी प्रसन्नता से रथ में बिठाकर ले जा रहा है। उसी देवकी के आठवें गर्भ की संतान तुझे मार डालेगी। इसका आठवां गर्भ तेरा काल होगा।
 
यह सुनकर कंस कहता है कि देवता भी जिसकी पदचाप सुनकर थर्राने लगते हैं। देवकी का आठवां गर्भ की संतान मुझे मार डालेगी। यह कहते हुए कंस अट्टाहास करता है। तब कंस कहता है कि ना रहेगी देवकी और ना होगी उसकी आठवीं संतान। यह कहते हुए वह तलवार निकाल लेता है। जय श्री कृष्णा।।
 
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