प्रशस्त विश्वकर्मा : कोरोना संक्रमण के दौर में सेवा के कीर्तिमान रचता 24 साल का युवा

WD
हम हैं न फाउण्डेशन
 
प्रगती गरे दाभोळकर
 
युवा , youth , youngsters, इन शब्दों का हम जब भी उपयोग करते है तो हमारे सामने आते है शरीर पर टैटू बनाए हुए घुटनों पर फटी जींस पहने ,बालों मे स्पाईक कट बनाए हुए अजीब प्राणी जो हर बात में पार्टी करना पसंद करते है, घूमना, खाना-पीना इन्हे बेहद पसंद होता है और हां हर एक मिनट में सेल्फी लेना , सोशल मीडिया पर अपडेट रहना , मोबाईल का साथ वॉशरूम में भी ना छोडना और हाफ पैंट में शहर क्या विदेश घूम आना वगैरा वगैरा।।।।
 
ये जो 1990 के बाद दुनिया में आए है ना थोडे अजीब लोग है, इनके लिये झगडा याने "मैटर" और दोस्त याने "ब्रो" है।
 
पहले के जमाने मे कहा जाता था अभी 25 का ही तो है ये अभी पूरी जिंदगी पडी है पर आज की ये "मिलेनियल जनरेशन" 25 वे साल तक जीवन का आधा पडाव पार कर चुकी होती है, हम सब जानते हैं कि भारत सबसे ज्यादा युवाओं वाला देश है , हमारे यहां के नौजवान हर बात में आगे है और आज का ये युवा अपनी मेहनत से देश में और समाज में बदलाव लाने की ताकत रखता है!!!!
 
तो आज हम एक ऐसे ही नौजवान के बारे मे जानेंगे जिसने अपने अनोखे अंदाज से खुद को बाकी सबसे अलग साबित किया। मात्र 24 वर्ष का ये लडका बाकी सब के लिए एक प्रेरणा बन गया। जबलपुर शहर का एक युवा उद्यमी प्रशस्त विश्वकर्मा जो कि अपने व्यवसाय के साथ ही समाज और देश के लिये एक अमूल्य कार्य कर रहा है , आइए जानते हैं प्रशस्त के जीवन के बारे में...
 
प्रस्तुत है प्रशस्त से बातचीत के कुछ अंश 
 
1) बचपन के बारे में प्रशस्त : पढने मे कुछ खास कमाल कभी किया नही , बस स्कूल जाना और पास हो जाना इतना ही आता था ,बहुत confusion था आगे करना क्या है?? सब अलग अलग बताते , पर कोई एक रास्ता नहीं निकलता, ऐसे ही बचपन बीता।
 
2) समाजसेवा करना है ये विचार मन में कैसे आया? 
प्रशस्त :  जब से समझ आयी पिताजी को हमेशा दूसरों की मदद करते देखा , जो भी जरूरतमंद घर आया वो कभी खाली हाथ नहीं लौटा, तभी से मन में दूसरो की सहायता का विचार आया , पिताजी से इस काम को करने की प्रेरणा मिली, तभी अपने स्तर पर लोगो की सहायता शुरू की, जितना संभव हुआ सहायता करने की पूर्ण कोशिश की। 
 
3)ऐसी कोई घटना जिससे प्रेरित होकर आपने यह कार्य करने का निश्चय किया?? 
प्रशस्त : घर के ही पास एक बूट पॉलिश वाला बैठा करता था , जिससे कभी कभी वो अपने जूते पॉलिश कराता था , एक दिन बातो-बातो में पता चला कि उस बूट-पॉलिश वाले की बेटी दिव्यांग है , घर में कमाने वाला वो एक ही है और जूते पॉलिश करके वो अपनी बेटी का इलाज नहीं करा सकता।। ये सुनकर दुख हुआ और अगले दिन से पांच गुना अधिक दाम देकर रोज अपने जूते पॉलिश कराना शुरू कर दिया जिससे कि उस आदमी की मदद हो सके। 
 
और तभी प्रशस्त ने ये निश्चय किया कि वो जितना हो सके ऐसे लोगों की सहायता करेगा , ऐसे उपेक्षित लोग जिनके पास रहने को घर नहीं, खाने को अन्न नहीं, कपडा नहीं, इलाज के लिये पैसे नहीं, त्यौहार मनाने के लिये साधन नहीं,उन सब के लिये जो कुछ संभव होगा वो करेंगे, और हां ऐसे लोग जो वाकई जरूरतमंद हैं उन्हे ढूंढ कर उनका जीवन सरल बनाने का प्रयत्न करेंगे।
 
4) आपकी संस्था " हम हैं न फाउण्डेशन"  इसके बारे में कुछ बताइये!!
प्रशस्त : ये एक ग्रुप है जो उसने अपने हम उम्र दोस्तो "आशीष" "शरद" और "रितेश" के साथ मिल कर बनाया है जिससे वो अधिक से अधिक लोगों की सहायता कर सके , इस फाउण्डेशन को वे लोग किसी की मदद से नहीं चलाते बल्कि सामान जुटाने के लिये लोगो से अपील करते हैं जिससे वो हर जरूरतमंद तक पहुंच सके , 
 
इस काम में प्रशस्त के माता-पिता का भी पूरा सहयोग रहा तथा वे समय-समय पर उसको प्रेरणा देते रहे, अब उनका यह ग्रुप अपने तरह का अनोखा ग्रुप था जिसमे सबसे युवा कार्यकर्ता थे , शुरूआती दौर में इन लोगो ने भोजन सामग्री बांटने का काम किया फिर धीरे-धीरे सभी आवश्यक वस्तुएं, खाना , मिठाई , फल , त्यौहार मनाने मे लगने वाली आवश्यक वस्तुएं वितरित करने लगे , उद्देश केवल इतना कि त्यौहार के दिन कोई भूखा ना सोए।
 
5) करियर के बारे में नहीं सोचा? 
प्रशस्त: एक समय घरवालो को भी यही लगा था कि किसी महानगर में जाए आगे की पढाई करे और वहीं अच्छे पैकेज की नौकरी करके बस जाए, परंतु ऐसा करने से उद्देश्य कहां पूरा होने वाला था, अभी बहुत से काम करने थे , इसलिये अपने ही शहर मे रहकर व्यवसाय करने को चुना जिससे बचा हुआ समय "हम है ना" फाऊंडेशन को दे सके, 
 
और प्रशस्त अपने इस फैसले से खुश है आज जब उसके बहुत से साथी महानगरों मे रहते हैं, रोज पार्टियां करते है तो एक बार उन्हे लगता है कि शायद कुछ खो दिया पर अगले ही पल उन जरूरतमंद लोगों के चेहरे याद आते है उनसे मिलने वाली दुआएं याद आती है और वो खुश हो जाते हैं ये सोचकर कि इस मुस्कान के आगे किसी बात का कोई मूल्य नहीं!!!
 
6)एक और कदम
 थैलेसीमिया एक ऐसी बीमारी है जिसमे शरीर मे रक्त जमता नहीं, यह एक ऐसी तकलीफ है जिसमे मरीज को बार बार रक्त देना पडता है जिससे वह जीवित रह सके , अभी तक इस समस्या का कोई निदान नही हुआ है और इस तरह हर हफ्ते मे एक बार रक्त की आवश्यकता पडती है यह बहुत ही महंगी और खर्चीली प्रक्रिया है जो एक साधारण व्यक्ति की जेब से बाहर की बात है। 
 
"हम हैं न" ग्रुप के युवाओं ने इस बीमारी से ग्रसित बच्चो की मदद करने की ठानी , अब वे उन छोटे बच्चो के लिये रक्तदान करने लगे जो थैलसेमिया पीडित है व जिनके माता-पिता ये खर्च नही उठा सकते, प्रशस्त अब नियमित रूप से रक्तदान करने लगे व अन्य लोगो से भी इसके लिये अपील करने लगे!!!
 
 और आपको यह जानकर आश्चर्य से ज्यादा गर्व महसूस होगा कि प्रशस्त और उसके साथियो ने  150 से अधिक बार रक्तदान करके अनेक मासूमों को जीवनदान दिया है 
 
7) कोरोना संक्रमण - आज जब पूरी दुनिया कोरोना वायरस संक्रमण से जूझ रही है सभी अपने अपने घर मे बंद है ऐसी विपदा के समय भी प्रशस्त और उसके साथी पिछले 10 दिनो से लगातार जरूरतमंदो की मदत कर रहे हैं, वे सभी अपने स्तर पर सामग्री जुटाने का काम कर रहे हैं, हर प्रकार से कोशिश कर रहे हैं कि इस लॉकडाउन के समय कोई मजदूर कोई गरीब भूखा ना सोए, दिन भर अपना व्यवसाय संभालना व रात को अपने जरूरतमंद भाईयों की मदद करना, यही उनका पहला कर्तव्य हो गया है , कभी-कभी कोई बहुत ही महत्वपूर्ण मीटिंग छोडकर भी इस काम के लिये जाना पडता है पर नुकसान की परवाह न करते हुए सबसे पहले मदद के लिये जाना यही उनका उद्देश्य बन गया है, संक्रमण का खतरा इतना अधिक होते हुए भी स्वयं अपनी चिंता न करके दूसरो को सहायता पहुंचाना, मात्र 24 वर्ष की आयु मे इतना दृढनिश्चय और संकल्प अत्यंत सराहनीय है!!!
 
8) सोशल मीडिया का जीवन में उपयोग-सोशल मीडिया  उनके काम की "बैकबोन" है , इसके बिना वो कोई काम नहीं कर सकते , वो लगातार सोशल मीडिया पर एक्टिव रहते हैं व अपनी सारी गतिविधियां शेयर करते हैं, किसी प्रकार की प्रसिद्धी पाने का उद्देश्य मन में नहीं है बल्कि ये फोटो देखकर बाकी युवाओं को प्रेरणा मिले वो आगे आएं और इस पवित्र काम में उनकी मदद करे!! 
 
बहुत से लोगो का कहना होता है कि जो भी करना है उसका प्रचार क्यों , पर इस बारे में प्रशस्त का स्पष्ट मत है कि बताएंगे नहीं तो पता कैसे चलेगा , इस नेक काम को अभी बहुत आगे ले जाना है।
 
"हम हैं न फाउण्डेशन को राष्ट्रीय स्तर पर ले जाना , गरीब बच्चों के लिये स्कूल खोलना ऐसे अनेक स्वप्न है जो अभी पूरे होना है जिसके लिये सोशल मीडिया जैसा सशक्त माध्यम आवश्यक है!!
 
प्रशस्त का यह अनूठा कार्य, उसके लिये की जाने वाली मेहनत , निरंतर हर प्रकार से जुटे रहना , अपने साथ अन्य लोगों को प्रेरणा देना, भरपूर उत्साह , सजगता ये आज के युवाओं के लिये एक सीख है, आज जब युवा महानगर की ओर भाग रहा है , हर कोई अपना शहर छोड कर जाना चाहता है , बाहर ही बस जाना चाहता है लाखो के पैकेज वाली नौकरी करना चाहता है ऐसे समय प्रशस्त जैसे युवा एक योग्य उदाहरण है कि पैसा ही जीवन में सबकुछ नहीं, धन्य है वो माता-पिता जिन्होने अपने बेटे को परोपकार के संस्कार दिये है, पैसे कमाने की अंध स्पर्धा से ऊपर उठकर जीवन जीने के असली मायने सिखाए हैं  और इस अनोखे काम मे हर कदम पर प्रशस्त की प्रेरणा बने हैं!
 
जीवन का अर्थ बताते हुए प्रशस्त कहते हैं 
"सर्वे भवन्तु सुखिनः 
सर्वे सन्तु निरामया" 
 यही उनके जीवन का मूल्य है और उद्देश्य भी ।
 ऐसे लोग नाम और प्रसिद्धी पाने दुनिया में नहीं आते , परंतु दुनिया उन्हे उनके अच्छे कामो से पहचानने लगती है... 
 
 प्रशस्त का मार्ग प्रशस्त हो यही शुभकामनाएं हैं.... 

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