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ग़ज़ल : मोईन हसन जज़बी
बुधवार, 16 अप्रैल 2008
शरीक-ए-मेहफ़िल-ए-दार-ओ-रसन कुछ और भी हैं सितमगरो, अभी एहल-ए-कफ़न कुछ और भी हैं
ख्वाजा मीर दर्द(1720-1784) की ग़ज़लें
मंगलवार, 1 अप्रैल 2008
अर्ज़ ओ समाँ कहाँ तेरी वुसअत को पा सके मेरा ही दिल है वो कि जहाँ तू समाँ सके
गीत : ईद
ग़ज़ल - मीर तक़ी मीर
अपने तड़पने की मैं तदबीर पहले कर लूँ तब फ़िक्र मैं करूँगा ज़ख़्मों को भी रफू का यह एैश के नहीं हैं य...
ग़ज़ल-मीर तक़ी मीर
मुँह तका ही करे है जिस तिस का हैरती है ये आइना किस का शाम से कुछ बुझा सा रहेता है दिल हुआ है चि
ग़ज़ल - ज़ोक
क्या मद्द-ऐ-नज़र है यारों से तो कहिए गर मुँह से नहीं कहते, इशारों से तो कहिए हाल-ए-दिल बेताब कहा ...
ग़ज़ल - ज़ोक
ग़ज़ल- मोमिन खाँ मोमिन
रोया करेंगे आप भी बरसों इसी तरह अटका कहीं जो आपका दिल भी मेरी तरह मर चुक कहीं के तू ग़म ए हिजराँ ...
ग़ज़ल - मीर
उलटी हो गईं सब तदबीरें, कुछ न दवा ने काम किया देखा इस बीमारी-ए-दिल ने आख़िर काम तमाम किया एहद-ए-ज...
ग़ालिब
नक़्श फ़रयादी है किसकी शोख़ि-ए-तेहरीर का काग़जी है पैर हन हर पैकर ए तस्वीर का काव-ए-काव-ए-सख़्त जानीह...
ग़ज़ल- अ़दम
ग़म-ए-मोहब्बत सता रहा है, ग़म-ए-जमाना मसल रहा है मगर मेरे दिन गुज़र रहे हैं मगर मेरा वक्त टल रहा ह...
ग़ज़ल- जोश मलीहआबादी
सोज़-ए-ग़म दे के मुझे उसने ये इरशाद किया जा तुझे कशमकश-ए-दहर से आज़ाद किया दिल की चोटों ने कभी...
ग़ज़ल- इकबाल
अजब बाइज़ की दींदारी है या रब अदावत है इसे सारे जहाँ से कोई अब तब न ये समझा कि इन्साँ कहाँ ज
ग़ज़ल- अकबर इलाहाबादी
समझे वही इसको जो हो दीवाना किसी का 'अकबर' ये ग़ज़ल मेरी है अफ़साना किसी का गर शैख़ो-बहरमन सुने...
ग़ज़ल- दाग़ दहलवी का कलाम
आज राही जहाँ से 'दा़ग़' हुआ खाना-ए-इश्क' बे चिराग़ हुआ ऐसी क्या बू समा गई तुम को हम से जो इस क...