क्या आपको नहीं लगता मृत्यु ने अपना पैटर्न बदल लिया, आने से पहले अब उसकी आहट भी नहीं आती?
अत्याधुनिक इलाज से हमने जीवन को कुछ घंटे, कुछ दिन खींचकर जरूर लंबा कर लिया है, लेकिन स्वस्थ मौत मरने के गुर हमने भुलते जा रहे हैं। अब हम घर में नहीं मरते, अपने कमरे में नहीं मरते, अपनी जगह पर नहीं मरते, अब हम अस्पताल में ज्यादा मरते हैं, सफर करते हुए मर जाते हैं, जिम करते हुए, नाचते, गाते और खाना खाते...