अभय छजलानी : हिंदी पत्रकारिता की आत्मा के वासी
अभयजी खुद कम से कम लिखते थे, लेकिन नए बंदों से ज्यादा से ज्यादा लिखवाते थे। एक जमाने में उनका साप्ताहिक कॉलम गुजरता कारवां पढ़ने के लिए लोग अखबार संबंधित पन्ने ही खोलते थे। पेज बनवाते समय शीर्षक में से एकाध शब्द को इधर-उधर करवाकर हेडिंग को वे ऐसा कस देते थे कि उसे बार-बार पढ़ने को जी चाहता था। लगता था...